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टीम बलरामपुर- एक सुपर टीम

जब दूसरों की सेवा सहायता और मदद करने की बात आती है वह भी पूरे मन और दिल से तो टीम
बलरामपुर उनमें से एक सुपर टीम मानी जाती है। इस टीम के सदस्यों ने बड़ी मेहनत करके कठिन से
कठिन बाधाओं को पार किया और कहीं बच्चों महिलाओं एवं बड़ों की मदद करके उनका भरोसा हासिल किया।

इस टीम का गठन मेहताब खान, इब्ने तालिब, मोहम्मद अनवर , जावेद पठान , शाह आलम, नावेद खान ने किया था ।

मेहताब खान बलरामपुर के वासी हैं जिन्होंने MBA और 2 साल तक नौकरी करने के बाद अपना खुद का व्यापार चालू किया। बचपन से ही समाज सेवा करने का इन्हें बहुत शौक था और इसीलिए जब इन्होंने टीम बलरामपुर का निर्माण किया तो अनेक लोग उनके साहित्य के लिए आगे बढ़े। कुछ ही दिनों में उन्होंने ईमानदार समाज सेवा के काम के लिए लोगो का प्यार पा लिया। मदद ही मकसद है के स्लोगन को उन्होंने पूरी तरह निभाया।

समय आगे बढ़ा और और लोग जुड़े। समस्त नागरिक बलरामपुर टीम बलरामपुर का हिस्सा है। धीरे-धीरे और लोग जुड़े जैसे कि संजय, मुशीर, फिरोज, शिवम, डॉक्टर अखिलेश और मोवीन खान। बल्कि उनका कहना है कि शहर के हर लोग जो टीम बलरामपुर की आर्थिक सहायता कर रहे है वो सब टीम बलरामपुर का हिस्सा है।

इनकी ताकत ही इनका मकसद है जो भारतीयों को एक महफूज और सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करता है।
जैसे एक लोहे की जंजीर अपने मजबूत पकड़ से भारी से भारी चीजें उठाने को तैयार रहती है वैसे ही यह
अपनी बुलंद आवाज़ और इरादों से ज़रूरतमंद की सहायता करने के लिए अपने हाथ हमेशा आगे करते
हैं।
COVID-19 के दौरान करी सहायता।
करोना वायरस के कारण लॉकडाउन होने के बाद जो प्रवासी मज़दूरों की कठिनाइयों का बोझ उठाना
पड़ा तो उनके कंधे पर एक हाथ इन्होंने भी रखा। ना देखा कोई भेद ना देखा कोई भाव इन लोगों ने सबको
अपना भाई समान माना। इनके विचारों में एक विचार यह भी है कि हर इंसान को सम्मान देना चाहिए
और इनके काम से प्रेरणा प्राप्त करना चाहिए।

जो कहीं मिलो मिल चले नंगें पांव ना कई दिनों से खाया ना कुछ पिया और ना ही नहाया उन प्रवासी
मज़दूरों को इन्होंने खाना खिलाया और उनकी लंबी यात्रा को एक बेहतर रूप से पूरा करने में उनको
अपना समर्थन दिखाया।
प्रवासी मज़दूर को इन्होंने अपना परिवार ही समझा और उन्हें कहीं लंच डिनर पैकेट बनाकर पहुंचाया।
लॉकडाउन में हुए ईद के त्योहार को इन्होंने राहत सामग्री और सेवइयां बांट के इन्होंने मनाया। नन्हीं सी
जान से लेकर बड़े बुजुर्गों तक के चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश इनकी हमेशा जारी रहती है।
लॉकडाउन के हर दिन में इन्होंने जान लगा दी ताकि हर प्रवासी मजदूर जो बलरामपुर से गुजरे उसे लंच या
डिनर पैकेट मिल जाए। हजारों की तादाद में चल रहे भूखों की जब इनको खबर लगी तो इन्होंने हर उस
व्यक्ति तक पहुंच कर उसके लिए चना, रेवड़ी, फ्रूट, बिस्कुट, पानी और अन्य प्रकार के खाने पीने का
इंतेज़ाम किया। इनका मजदूरों को भोजन खिलाने का कार्य मजदूरों को हौसला दिलाने में सफलता
प्राप्त करते हुए दिखा। इन्हें इनके वीर और बहादुर अभ्यास के कारण ही इन्हें फरियाद फाउंडेशन में इन
के हर सदस्य को करुणा योद्धा से सम्मानित किया। यह सब की सेवा के लिए हमेशा ऐसे ही समर्पित हैं।
इन योद्धाओं का नाम है महताब खान, इब्ने तालिब, मोहम्मद अनवर खान, शाह आलम, जावेद और
नावेद। करोना से लड़ते हुए लोगों की मदद की इस यात्रा में इनको अनेक व्यक्तियों ने आर्थिक सहायता
दी।
सभी को ऐसी संस्थओं के बारे में लिखना और पढ़ना अच्छा लगता है। किन्तु जब बारी मदत करने की
आती है, तब हम पीछे हो जाते है। इस संस्था के जैसी कई और भी एन. जी. ओ. होते है जो कि समाज सेवा
में अपना पूर्ण योगदान देते है, और अपने लिए कोई भी पैसे या अन्य संपत्ति का लाभ नहीं रखते। समाज
में आज के युग में ऐसे संस्थाओं का होना अनिवार्य है। और यह हमारे मदद के बिना नहीं ही सकता। हमर
ज़्यादा सेज़्यादा इन्हे दान देना चाहिए, ताकि ये ज़्यादा क्षेत्रों में मदद डे सके। आज हम अपने अपने घरों में
बैठ कर निष्टित होकर अपनी रोटी खा पा रहे है। जिस समय कुछ प्रवासी मजदूर अपने घर जाने का
प्रयास कर रहे है। हमे ये बात जान लेनी होगी कि हमे मिल रही रोटी वी बात कर के खाना हमारा कर्तव्य है।
हमे यह भी पता है कि यदि हम अपने वेतन का केवल 2 प्रतिशत भी इनके लिए डे डे तो इन्हे काफी मादत
हो जाएगी और हमारा, कुछ भी नहीं बिगड़ेगा।
मदात देना केवल पैसे देकर नहीं हो सकता, उसके और भी तरीके है। हम यदि स्वयं आर्थिक समस्या में
उलझ गए है तो हम अपना योगदान ऐसी संस्थाओं में सम्मिलित हो कर डे सकते है। एक वोलेंटियर के
रूप में हो या एक कर्मचारी के रूप में, हम ऐसी संस्तहो को मजबूत बना सकते है। इससे ना हमारे पैसे
जाएंगे और ना ही ज़्यादा समय। हम सबको समझ के हित में काम करने का मौका भी मिल जाएगा।

इनके असाधारण काम के लिए इन्हें हर व्यक्ति से सलाम और सामान मिलने का हक है। अगर इनकी
सहायता करनी है तो आप इन्हें गूगल पे और Facebook के माध्यम से आर्थिक मदद कर सकते हैं।

ऐसे ही और भी प्रेरक कहानियाँ पढ़ें।

Nikita Sahani

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    Nikita Sahani

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